डॉक्टर हाथी: एक साधारण लड़का, एक असाधारण सफ़र
मुंबई: सपनों का शहर, और एक सपने देखने वाला लड़का
बिहार के सासाराम की मिट्टी से निकला एक लड़का, जिसकी आंखों में चमकते थे बड़े-बड़े सपने। नाम था कवि कुमार आज़ाद। 12 मई 1972 को जन्मे आज़ाद को ज़िंदगी में कुछ अलग करना था, कुछ ऐसा जो साधारण न हो। इसलिए चुपचाप एक दिन घर से निकले और पहुंच गए सपनों के शहर — मुंबई।
लेकिन मुंबई कोई आसान शहर नहीं है। यह शहर हर सपना देखने वाले को पहले तोड़ता है, फिर कसौटी पर परखता है, और बहुत कम लोगों को मुकाम तक पहुंचाता है। कवि कुमार को भी इसी संघर्ष से गुजरना पड़ा। न कोई जान-पहचान, न पैसा, न कोई ठिकाना। पर एक जिद थी — कुछ बनकर दिखाना है।
शुरुआत: छोटे कदम, बड़ी उम्मीदें
मुंबई में जीवन की शुरुआत संघर्ष से हुई। कभी एडवरटाइज़मेंट में छोटे रोल्स, कभी साइड कलाकार के तौर पर टेलीविज़न में जगह। ‘घर जमाई’, ‘जूनियर जी’, ‘चाचा चौधरी’, ‘शरारत’, ‘हातिम’ — ये शोज़ उस दौर के हैं जब कवि कुमार धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहे थे।
बड़ी खुशी की बात तब हुई जब राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशक के साथ एक विज्ञापन में काम करने का मौका मिला। यहीं से करियर को रफ़्तार मिली।
सिनेमा की दुनिया में कदम
साल 2003 में पहली बार फ़िल्म फंटुश में दिखे। फिर सलमान खान के साथ क्योंकि और बाद में जोधा अकबर में छोटे लेकिन प्रभावशाली रोल में नज़र आए। इन किरदारों ने उन्हें पहचान दिलाई, लेकिन असली पहचान अभी बाक़ी थी।
डॉक्टर हाथी — एक नाम, जो इतिहास बन गया
और फिर आया ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’। इसमें उन्होंने निभाया ‘डॉक्टर हाथी’ का किरदार — एक ऐसा किरदार जो मानो उनके व्यक्तित्व का विस्तार हो। चुलबुला, हंसमुख और खाने-पीने का शौकीन।
यह सिर्फ एक किरदार नहीं था, यह उनके जीवन की दिशा बदल देने वाला मोड़ था। यही वो शो था जिसने उन्हें भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया। लोग उन्हें नाम से नहीं, डॉक्टर हाथी कहकर पहचानने लगे।
सपनों का सच होना और फिर वो आखिरी मोड़
जिस लड़के के पास कभी किराए की छत तक न थी, अब उसका खुद का घर था, अपनी गाड़ी थी, और गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर भी। ज़िंदगी में वह सब कुछ था जो कभी ख्वाबों में था। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।
9 जुलाई 2018 को कवि कुमार आज़ाद का अचानक कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया। इस खबर ने न सिर्फ ‘तारक मेहता’ के प्रशंसकों को, बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। एक हंसता-खेलता चेहरा हमेशा के लिए खामोश हो गया।
एक अधूरी कहानी, एक अमर याद
डॉक्टर हाथी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका किरदार, उनकी मुस्कुराहट, उनकी जिंदादिली आज भी टीवी स्क्रीन पर ज़िंदा है।
कहते हैं, कुछ लोग चले जाते हैं, लेकिन कहानियां रह जाती हैं।
कवि कुमार आज़ाद की कहानी भी ऐसी ही है — एक साधारण लड़के की, जिसने अपने जज़्बे से खुद को अमर कर दिया।
किस्सा टीवी की ओर से डॉक्टर हाथी को नमन।
आप हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगे।