जूनियर महममूद और जितेंद्र: आख़िरी मिलने का अनकहा रिश्ता
पिछले साल की यह तस्वीर जब वायरल हुई थी, तो हर किसी की आँखें नम हो गई थीं। अस्पताल की सिसकती दवान्दगी के बीच, अपनी आख़िरी सांसों को गिन रहे जूनियर महममूद ने एक ही चाह जताई—अपने बड़े भाई जितेंद्र से मिलना।
1. अचानक आई खबर, बड़ी भाई की भागदौड़
जब जूनियर की तबियत बिगड़ी, फ़ौरन खबर पहुंची तब तक जितेंद्र जी मुंबई से उड़कर उस यतिय़ा बिस्तर तक पहुँचे। अंदर झाँकते ही उनके कदम रुक गए—जूनियर महममूद, जिन्होंने जब-जब बड़े पर्दे पर मोंटू बने, अपनी चुलबुली मुस्कान से सबका दिल जीत लिया, अब बिस्तर पर सिमट कर पड़े थे।
जितेंद्र (आँखों में अश्रु): “लाला… मैं आ गया।”
2. इंसानियत की मिसाल
जूते उतारकर जितेंद्र जी ने धीरे से बिस्तर पर पैर रखा और अपने हाथों से जूनियर का सिर सहलाया।
राकेश बक्षी के फोटोग्राफर लेंस में वही क्षण कैद हुआ, जब दोनों भाई एक दूसरे की गोद में आँखों में आँसू लिए टूट पड़े।
3. “कारवां” की शूटिंग का वो रोमांचक किस्सा
जूनियर महममूद ने जितेंद्र जी के साथ “कारवां” (1971) में मोंटू का रोल निभाया। याद है वह क्लाइमेक्स सीन—जब गुंडों ने जितेंद्र जी के गले में फंदा बाँधा और उन्हें जूनियर के कंधों पर खड़ा कर दिया?
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लॉन्ग शॉट में दिखाना था कि पूरा बोझ जूनियर उठा रहे हैं।
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तब जूनियर महममूद उम्र में छोटे, पर हौसले में बुलंद थे।
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सात-आठ बार रिहर्सल के बाद, बिना एक भी झिझक के उन्होंने सीन फ़्लॉलैस शूट किया—और उस दिन दोनों की तारीफ़ों के पुल बाँध दिए गए।
4. जीवन और यादें
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जन्म: 15 नवम्बर 1956, मुंबई
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फ़िल्म सफर: 1968 से 1980 तक दर्जनों फिल्मों में कॉमिक सपोर्ट रोल्स
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पसंदीदा याद: “कारवां” की शूटिंग पर जितेंद्र साहब द्वारा दी गई सराहना
आज जूनियर महममूद का जन्मदिन है—हम सभी को यह मौका देता है कि हम नमन करें उस मासूम प्रतिभा को, जिसने बड़े पर्दे पर हँसी का जादू बिखेरा, और अपनी आख़िरी साँस तक भाई के प्यार का सहारा लिया।
किस्सा टीवी श्रद्धांजलि अर्पित करता है जूनियर महममूद को—उनकी मुस्कान और उनकी यादें हमेशा ज़िंदा रहेंगी।