सुनिल दत्त: मुंबई की सड़कों पर बीती भूख-प्यास और इरानी कैफ़े की बची-खुची चादरें

सुनिल दत्त: मुंबई की सड़कों पर बीती भूख-प्यास और इरानी कैफ़े की बची-खुची चादरें

“मुंबई में संघर्ष किया, इरानी कैफ़े ने मुझे जिया…”


1. काला घोड़ा का वह छोटा-सा कमरा

जब सुनिल दत्त (1929–2005) बहुत युवा थे, एक छोटे से गांव नक्का खुर्द, झेलम ज़िला, पंजाब से निकले थे। मुंबई आने के बाद इन्हें काला घोड़ा क्षेत्र में स्थित एक Army & Navy बिल्डिंग में एक कमरे का रहन-सहन मिला। उस कमरे में कुल नौ लोग रहते थे—कुछ दर्ज़ी (टेलर), कुछ नाई (बाल काटने वाले) और एक नवोदित अभिनेता के रूप में सुनिल दत्त अकेले। कमरे की तनहान दीवारें बहुत बड़ी थीं, लेकिन गरमी में वहां ऊष्मा इतनी भयंकर हो जाती थी कि रात में आठ लोग उस कमरे में सोना नामुमकिन हो जाता था।
प्रतिमूर्ति: Army & Navy Building, Kala Ghoda 


2. फुटपाथ की वो लंबी रातें

जब जून और जुलाई की दुपहरी में तापमान चढ़ जाता, तो आंतरिक मर्यादा खो जाती—सारे साथी फुटपाथ पर आ जाते। बीच सड़क पर लगने वाली इरानी कैफ़े की ठंडी, चूनी वाली छत के नीचे बिछाया आराम, और चादर फैलाकर एक-एक इंच जगह बनाई जाती। सुनिल दत्त ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था, “पूरी रात वहीँ बिताई—वहां सुबह तक गुहार लगती, सबकी आंखों में नींद होती, मगर किसी के पास घर नहीं होता।”


3. इरानी कैफ़े में उठी नई सुबह

हर सुबह साढ़े पाँच बजे एक इरानी (पारसी) रेस्टोरेंट की लोहे-सी दुकान खुलती थी। उस वक्त ही सुनिल दत्त की नींद खुल जाती। वे और उनके रूममेट्स तह कर बिस्तर, झाड़ू से फुटपाथ साफ़ करके भीतर जाते, चौकीदार के निगाहों के बीच “मार्च किया हुआ” लेटते, ताकि कोई पता न लगा सकें। वहां चाय का पहला घूंट, ताज़ा ब्रेड रोल्स और गुड़ की हल्की मिठास जगा देती।
प्रतिमूर्ति: इरानी कैफ़े का इंटीरियर, सिलेंडर टेबल और अलमारियाँ
सुनिल दत्त ने याद किया:

“वो चाय जब गिलास में आती थी, चांदी की चाय की टेढ़ी चम्मच के साथ उसकी खनक सुन लेता था—ऐसी लगती थी जैसे नई जिंदगी की झलक हो।”


4. जय हिंद कॉलेज और नौकरी की राह

सुबह के सात बजे तक वे जय हिंद कॉलेज (Jaihind College, मुंबई) में दाखिला लेते, वहीं पास के BEST (Brihanmumbai Electricity Supply and Transport) ट्रांसपोर्ट के कर्मचारी बनकर ड्राइवर के सहायक की नौकरी भी कर लेते। पढ़ाई-लिखाई, रसोई के चूल्हे का खर्च, किताबों की मोहर—सबका जिम्मा उठाने के लिए सुबह का वक़्त अलग, कॉलेज का घंटा लगते ही कॉलेज और आधी-अधूरी नींद को पेट भरने वाली उस इरानी चाय की जरूरत अलग।
प्रतिमूर्ति: Jaihind College का प्रतीकात्मक लोगो


5. पारसी रेस्टोरेंट्स का महत्व

काला घोड़ा से थोड़ी दूरी पर, क्रिसेंट चौक (Churchgate) और खुदाबाद सर्कल (Khudadad Circle) में पारसी रेस्टोरेंट हुआ करते थे—ब्रिटानिया (Britannia & Co.), यज़दान (Yazdani’s), और कुछ ऐसे छोटे से चर्व-चर्व वाले ज़ायकेदार होटेल, जहाँ चाय और ब्रेड रोल्स का दाम काफी कम हुआ करता था। सुनिल दत्त बताते,

“अगर मुंबई में ये इरानी कैफ़े ना होते, तो हमें और मेरी तरह के कईयों को पेट भरने के लिए फुटपाथ की ज़मीन पर भी सोचना पड़ता। वेटर इतने पारंगत थे कि 10–12 कप चाय एक साथ ले जाते, कोई कप गिरता तक नहीं!”

 

6. चाय के साथ खुलती थीं राजनीतिक और सिनेमा की बातों के नए चैप्टर

सुबह छः बजे का वक्त था—छोटे-छोटे गत्ते के टेबल पर फैलते थे “इन-दी-मीटिंग” वाले तेवर। वहाँ कई छात्र, नौजवान और छोटे-अमले मिलकर देश की आज़ादी, फिल्मों में मिलने वाली भूमिकाएँ और आर्थिक मुद्दों पर बहस करते। सुनिल दत्त अक्सर अपने दोस्तों के साथ बैठकर फिल्म के सपने देखते, और साथ में ब्रेड रोल्स के बीच चीनी और हरे धनिये की चटनी का मज़ा लेते।

“हमारी तबियत और जेब दोनों को राहत वहाँ मिलती थी…”


7. संघर्ष से सम्मान तक का सफ़र

आठ कमरे वाले कोठे से लेकर बड़े-बड़े शहर के बड़े परदे तक का सफर आसान नहीं था। धीरे-धीरे ‘मरूता कुमार’ नाम से छोटे पर्दे पर पहचान बनी, और फिर ‘मधु’ जैसी फिल्मों से सुर्ख़ियाँ लूटीं। मगर दिल से कभी फुटपाथ का वह अँधेरा और इरानी चाय की गर्माहट नहीं भूली। कहते हैं—

“जब भी मुंबई में चाय की ख़ुशबू आती है, सुनिल दत्त को याद आ जाता था वो बचपन की गली, जहां IRANI की वो पुरानी कुर्सियाँ थीं।”


8. जन्मदिन की यादों में ताज़गी

आज, 6 जून, सुनिल दत्त का जन्मदिवस है। 1929 में पंजाब के झेलम ज़िले के नक्का खुर्द गांव में “बलराज” नाम से जन्मे ये सिलवटों भरे चेहरों वाले कलाकार आज भी दिलों में जिए हुए हैं। काला घोड़ा का कमरा, फुटपाथ की वो रातें, इरानी कैफ़े का पहला कप चाय, और जय हिंद कॉलेज के सहपाठियों की हँसी—इन सबने मिलकर सुनिल दत्त को वो मुकाम दिया, जो आज यादों की ख़िड़कियाँ खोलता है।

“साहस वही है जब अँधेरे में भी उम्मीद की एक लौ जलाए रखो।”

सुनिल दत्त को शत-शत प्रणाम।